Tuesday, September 2, 2008

Kshitij ka sach

एक दिन क्षितिज की ओर देखते हुए मेरे मन में ये ख्याल आया

की क्या इस पूरी कायनात में वास्तव में ऐसा कोई बिंदु है ,

ऐसी कोई शय है जो अपने आप में मुकम्मल हो,संपूर्ण हो,

जो हसरतों से परे और अधूरेपन की टीस से अनभिज्ञ हो,

क्या कोई मनुष्य इस मुकम्मल ज़िन्दगी को जी पाया है,

क्या कोई ऐसा है जिसे उसकी हर तमन्ना हासिल है ,

मस्तिष्क के इस तूफ़ान में मुझे एक ही जवाब मिल पाया,

के इस सवाल का कोई जवाब नहीं....................................

जैसे क्षितिज एक मिथ्या है, एक भ्रम है

ठीक उसी प्रकार सम्पूर्णता भी एक भ्रम है,

जो सही मायनों में हासिल नहीं हो सकती,

परन्तु इसका आभास होना संभव है

3 comments:

Anonymous said...

Khaalis sach hai...

Anonymous said...

badhiya hai....sach ki khoj kshitij ki sampurnta par ek gahra prashn-chhinh laga diya aapne.

Anonymous said...

hi