एक दिन क्षितिज की ओर देखते हुए मेरे मन में ये ख्याल आया
की क्या इस पूरी कायनात में वास्तव में ऐसा कोई बिंदु है ,
ऐसी कोई शय है जो अपने आप में मुकम्मल हो,संपूर्ण हो,
जो हसरतों से परे और अधूरेपन की टीस से अनभिज्ञ हो,
क्या कोई मनुष्य इस मुकम्मल ज़िन्दगी को जी पाया है,
क्या कोई ऐसा है जिसे उसकी हर तमन्ना हासिल है ,
मस्तिष्क के इस तूफ़ान में मुझे एक ही जवाब मिल पाया,
के इस सवाल का कोई जवाब नहीं....................................
जैसे क्षितिज एक मिथ्या है, एक भ्रम है
ठीक उसी प्रकार सम्पूर्णता भी एक भ्रम है,
जो सही मायनों में हासिल नहीं हो सकती,
परन्तु इसका आभास होना संभव है
3 comments:
Khaalis sach hai...
badhiya hai....sach ki khoj kshitij ki sampurnta par ek gahra prashn-chhinh laga diya aapne.
hi
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